वो कोई

Tuesday, August 21, 2007 | |

woh koi


"Woh Koi"...Someone who inspired me to write this is whom i found in one of those discotheques in Manipal. That was the one of my early visits to the very beauteous ambience. I dont know about her today, but she drove me cray and stayed in poem for every coming day!!

कभी हमें भी आzमाकर देखो
बैटे है इस्स मेहफिल में क़ब्से !
इस्स भीड़ में अकेले है मगर
कभी अपनी हाथ बडाकर तो देखो !

दुनिया झुखे आपकी क़दमों पर
कभी हमारे साथ , दो क़दम चलकर तो देखो !
होश उड़ाए तेरी नैनो कि झलक
कभी इस्स तरफ़ नज़र उठाकर तो देखो !

मोतिया न मिलेगा दर्ति पर
कभी सागर कि गेहराई को छूकर तो देखो !
हर दिल न दड्केगा तेरे लिए
कभी इस्स दिल में उतरकर तो देखो !

कभी हमें भी आज़्माकर देखो...

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